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________________ 39 द्वितीय अध्याय निरुपभोगमन्त्यम्।।44॥ सूत्रार्थ - अन्तिम शरीर उपभोग रहित है।।44।। - इन्द्रियों के द्वारा शब्द वगैरह के ग्रहण करने को उपभोग कहते हैं। - कार्मण शरीर में इस प्रकार का उपभोग न होने से वह निरुपभोग है। लब्धिप्रत्ययं च।।4।। सूत्रार्थ - तथा लब्धि से भी पैदा होता है।।47।। वैक्रियिक शरीर उपपाद जन्म से लब्धि से * देव और नारकियों का. *मुनिराज को तप विशेष से प्राप्त ऋद्धि * औदारिक शरीर का ही परिणमन ' तैजसमपि।।48।। सूत्रार्थ - तैजस शरीर भी लब्धि से पैदा होता है।।48।। तैजस शरीर AMASurvey अनिःसरण निःसरण स्वरूप | शरीरों को कांति देने वाला | शरीर से बाहर निकलने वाला स्वामी | सभी संसारी जीव । ऋद्धिधारी मुनिराज किसका परिणमन तैजस वर्गणा का आहार वर्गणा (औदारिक शरीर) का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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