________________
40
द्वितीय अध्याय
निःसरण तैजस शरीर
शुभ
* करुणा के कारण निकलता है।
* दाहिने कंधे से निकलता है।
* श्वेत वर्ण व शुभ आकृति का होता है।
* रोग, मारी आदि को दूर
करता है।
* बायें कंधे से निकलता है।
* सिन्दूरी वर्ण व बिलाव के आकार का होता है ।
* मन में रही विरुद्ध वस्तु एवं
स्वयं को भस्मीभूत करता है।
शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं प्रमत्तसंयतस्यैव ||49 || सूत्रार्थ - आहारक शरीर शुभ, विशुद्ध और व्याघात रहित है और वह प्रमत्तसंयत
के ही होता है। 49 ||
शुभ (अच्छे कार्य के लिए होता
है)
अशुभ
* क्रोध के कारण निकलता है।
आहारक शरीर
विशुद्ध
(शुभ कर्म के
कारण श्वेत
वर्ण समचतु
रस्र संस्थान)
Jain Education International
व्याघात रहित ( ढाई द्वीप में न
किसी से रुकता
है, न किसी को
रोकता है)
सूत्रार्थ - देव नपुंसक नहीं होते ||51||
नारकसम्मूर्च्छिनो नपुंसकानि ||50|| सूत्रार्थ - नारक और संमूर्च्छिन नपुंसक होते हैं ||50||
न देवाः ||51||
शेषास्त्रिवेदाः ||52||
सूत्रार्थ - शेष के सब जीव तीन वेदवाले होते हैं ।। 52।।
मुनिराज को
(छठे गुणस्थान
वर्ती किन्हीं
For Personal & Private Use Only
ऋद्धिधारी
मुनिराज को ही होता है)
www.jainelibrary.org