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________________ 38 सूत्रार्थ - प्रतिघात रहित हैं || 40 || अनादिसम्बन्धे च ||41 | सूत्रार्थ - आत्मा के साथ अनादि सम्बन्ध वाले हैं।।41।। सर्वस्य ॥ 42|| सूत्रार्थ - तथा सब संसारी जीवों के होते हैं ।। 42 || तैजस और कार्मण शरीर की विशेषता अप्रतिघात ( न किसी से रुकता है, किसी को रोकता है) द्वितीय अध्याय अप्रतिघाते ।। 40 ।। तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्यः ।।43 ।। सूत्रार्थ - एक साथ एक जीव के तैजस और कार्मण से लेकर चार शरीर तक विकल्प से होते हैं ।। 43॥ एक साथ एक जीव के कितने शरीर ++ से अनादि-सम्बन्ध सभी के (अनादि - संतति अपेक्षा) (सर्व संसारी जीवों के) (सादि-निर्जरा अपेक्षा) कौन तैजस, तैजस, तैजस, कार्मण कार्मण, कार्मण, औदारिक वैक्रियिक Jain Education International स्वामी - मोड़े वाली मनुष्य, विग्रह तिर्यंच गति में स्थित जीव 3 देव. नारकी तैजस, तैजस, कार्मण, कार्मण, औदारिक, औदारिक, आहारक वैक्रियिक छठे गुणस्थान-विक्रिया वर्ती आहारक ऋद्धिधारी ऋद्धिधारी मुनिराज मुनिराज For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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