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जीव
द्वितीय अध्याय . औपपादिकं वैक्रियिकम्।।46।। सूत्रार्थ - वैक्रियिक शरीर उपपाद जन्म से पैदा होता है।।46।।
| शरीर नाम औदारिक वैक्रियिक आहारक तेजस कामण स्वामी | मनुष्य व | देव व छठे गुणस्थान-सभी संसारी सभी | तिर्यंच । नारकी वर्ती आहारक जीव संसारी
ऋद्धिधारी
मुनिराज स्वरूप स्थूल शरीर | जो एक- । जो सूक्ष्म जो तीन ज्ञानावर
अनेक, सूक्ष्म- पदार्थ का शरीरों को णादि8 स्थूल, हल्का- निर्णय व कांति देता कर्मों का | भारी रूप | संयम की
समूह हो सके । रक्षा के लिए
होता है सूक्ष्मता | सबसे औदारिक वैक्रियिक से | आहारक से | सबसे
स्थूल से सूक्ष्म सूक्ष्म | सूक्ष्म । सूक्ष्म प्रदेशों | सबसे कम औदारिक से वैक्रियिक से | आहारक से सबसे (परम | (पर अनंत) असंख्यात | असंख्यात अनंतगुणे | ज्यादा णुओं) गुणे ।
| (तैजस की ।
से अनंत संख्या आगे-आगे के शरीरों में प्रदेशों की अधिकता होने पर भी उनका सम्बन्ध लौह पिण्ड की तरह सघन होता है, अतः वे बाह्य में
- अल्प (सूक्ष्म) रूप होते हैं।
| गुणे)
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