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________________ 36 द्वितीय अध्याय 84 लाख योनियाँ -तिर्यंच * एकेन्द्रिय नित्य निगोद, इतर निगोद, पृथिवी, जल अग्नि, वायु (प्रत्येक की 7-7 लाख) 6x7 | 42 लाख प्रत्येक वनस्पति 10 लाख *विकलेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय (प्रत्येक की 2 लाख) 6 लाख * पंचेन्द्रिय तिर्यंच 4 लाख -नारकी 4 लाख 3x2 -देव 4लाख -मनुष्य 14 लाख कुल योनि 84 लाख औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि।।36।। सूत्रार्थ- औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण-ये पाँच शरीर है।।36।। परं परं सूक्ष्मम्।।37।। सूत्रार्थ - आगे-आगे का शरीर सूक्ष्म है।।37।। प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक् तैजसात्।।38।। सूत्रार्थ - तैजस से पूर्व तीन शरीरों में आगे-आगे का शरीर प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा है।।38।। अनन्तगुणे परे।।39।। सूत्रार्थ - परवर्ती दो शरीर प्रदेशों की अपेक्षा उत्तरोत्तर अनन्तगुणे हैं।।39।। सूत्र क्रमांक 40 से 44 तक के लिए आगे देखें! गर्भसम्मूर्छ नजमाद्यम्।।45॥ सूत्रार्थ - पहला शरीर गर्भ और संमूर्च्छन जन्म से पैदा होता है।।45।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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