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द्वितीय अध्याय
84 लाख योनियाँ -तिर्यंच * एकेन्द्रिय नित्य निगोद, इतर निगोद, पृथिवी, जल अग्नि, वायु (प्रत्येक की 7-7 लाख) 6x7 | 42 लाख प्रत्येक वनस्पति
10 लाख *विकलेन्द्रिय
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय (प्रत्येक की 2 लाख)
6 लाख * पंचेन्द्रिय तिर्यंच
4 लाख -नारकी
4 लाख
3x2
-देव
4लाख
-मनुष्य
14 लाख
कुल योनि
84 लाख
औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि।।36।। सूत्रार्थ- औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण-ये पाँच शरीर है।।36।।
परं परं सूक्ष्मम्।।37।। सूत्रार्थ - आगे-आगे का शरीर सूक्ष्म है।।37।।
प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक् तैजसात्।।38।। सूत्रार्थ - तैजस से पूर्व तीन शरीरों में आगे-आगे का शरीर प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा है।।38।।
अनन्तगुणे परे।।39।। सूत्रार्थ - परवर्ती दो शरीर प्रदेशों की अपेक्षा उत्तरोत्तर अनन्तगुणे हैं।।39।। सूत्र क्रमांक 40 से 44 तक के लिए आगे देखें!
गर्भसम्मूर्छ नजमाद्यम्।।45॥ सूत्रार्थ - पहला शरीर गर्भ और संमूर्च्छन जन्म से पैदा होता है।।45।।
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