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________________ द्वितीय अध्याय 35 सचित्तशीतसंवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः ।। 32 || सूत्रार्थ - सचित्त, शीत और संवृत तथा इनकी प्रतिपक्षभूत अचित्त, उष्ण और विवृत तथा मिश्र अर्थात् सचित्ताचित्त, शीतोष्ण और संवृतविवृत - ये उसकी अर्थात् जन्म की योनियाँ हैं ।। 321 योनि (उत्पत्ति स्थान) सचित्त अचित्त सचित्ताचित्त संवृत ( चेतना ( चेतना (मिश्र) (ढकी) सहित) रहित ). शीत देव व नारकी गर्भज-मनुष्य व तिर्यंच सम्मूर्छन मनुष्य व • पंचेन्द्रिय तिर्यंच विकलेन्द्रिय केन्द्रिय (ठंडी) प्रत्येक जीव के ऊपर नौ में से हर समूह में से एक, अर्थात् कुल मिलाकर 3 योनि नियम से होती हैं। किस योनि में कौन जीव जन्म लेता है ? जीव योनि शीत व उष्ण संवृत्त जल साधारण वनस्पति Jain Education International उष्ण शीतोष्ण (गर्म ) (मिश्र) अचित्त सचित्ताचित्त (पृथिवी, वायु, प्रत्येक वनस्पति) मिश्र) अग्नि दो प्रकार (अचित्तव संवृतविवृत विवृत ( खुली) (कुछ ढकी, कुछ खुली) सचित्त तीनों प्रकार उष्ण शीत तीनों प्रकार For Personal & Private Use Only संवृतविवृत विवृत संवृत www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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