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द्वितीय अध्याय विग्रहगतौ कर्मयोगः ||25||
सूत्रार्थ - विग्रहगति में कार्मण काययोग होता है || 25 | अनुश्रेणि गतिः ||26||
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सूत्रार्थ - गति श्रेणी के अनुसार होती है ।। 26।। अविग्रहा जीवस्य || 27 ||
सूत्रार्थ मुक्त जीव की गति विग्रहरहित होती है ।। 27।। विग्रहवती च संसारिणः प्राक्चतुर्भ्यः ।। 28 11
सूत्रार्थ - संसारी जीव की गति विग्रहरहित और विग्रहवाली होती है। उसमें विग्रहवाली गति चार समय से पहले अर्थात् तीन समय तक होती है ।। 28 ।। एकसमयाऽविग्रहा | | 29 ||
सूत्रार्थ - एक समयवाली गति विग्रहरहित होती है || 2911 एकं द्वौ त्रीन्वाऽनाहारकः ||30||
सूत्रार्थ - एक, दो या तीन समय तक जीव अनाहारक रहता है। 3011
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विग्रहगति
(जीव का एक शरीर छोड़ दूसरे शरीर के लिए गमन करना)
अविग्रहा (मोड़े रहित)
ऋजुगति/इषुगति प्राणिमुक्ता
सीधी - बिना मोड़
1 मोड़ा
समय 1 समय
2 समय
अनाहारक अनाहारक नहीं होता 1 समय
काल
नाम
मोड़ा
-
विग्रहवती (मोड़े सहित)
लांगलिका | गौमूत्रिका
2 मोड़ा
3 मोड़ा
3 समय
4 समय
2 समय
3 समय
औदारिकादि तीन शरीर तथा छः पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों के ग्रहण करने को आहार कहते हैं।.
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