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________________ 33 द्वितीय अध्याय अनुश्रेणि गति (आकाश के प्रदेशों की पंक्ति के अनुसार गमन) मुक्त जीव संसारी जीव सिर्फ ऋजुगति चारों प्रकार की गति सम्मू नगर्भोपपावा जन्म।।31।। सूत्रार्थ - सम्मूर्छन, गर्भ और उपपाद - ये (तीन) जन्म हैं।।31।। सूत्र क्रमांक 32 के लिए आगे देखें! जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः।।33।। सूत्रार्थ - जरायुज, अण्डज और पोत जीवों का गर्भजन्म होता है।।33।। देवनारकाणामुपपावः।।34।। सूत्रार्थ - देव और नारकियों का उपपाद जन्म होता है।।34।। . शेषाणां सम्मूर्छनम्।।35।। सूत्रार्थ - शेष सब जीवों का सम्मूर्छन जन्म होता है।।35।। जन्म (पूर्व शरीर का त्याग कर नये शरीर का ग्रहण करना) गर्भ ..(माता-पिता के रंज व वीर्य से) उपपाद सम्मूर्छन (अंतर्मुहूर्त में शरीर पूर्ण (सब ओर से परमाणु युवा हो जाता है) ग्रहण कर शरीर की रचना) जरायुज अंडज पोत . (जेर लिपटे (अंडे से (बिना आवरण हुए जरायु से पैदा होते पैदा होते ही . पैदा होते हैं) हैं) चलने लगते हैं) -जैसे - गाय, हाथी चील, कबूतर सिंह, नेवला देव व नारकी शेष जीव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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