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द्वितीय अध्याय
अनुश्रेणि गति (आकाश के प्रदेशों की पंक्ति के अनुसार गमन)
मुक्त जीव
संसारी जीव
सिर्फ ऋजुगति
चारों प्रकार की गति
सम्मू नगर्भोपपावा जन्म।।31।। सूत्रार्थ - सम्मूर्छन, गर्भ और उपपाद - ये (तीन) जन्म हैं।।31।।
सूत्र क्रमांक 32 के लिए आगे देखें!
जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः।।33।। सूत्रार्थ - जरायुज, अण्डज और पोत जीवों का गर्भजन्म होता है।।33।।
देवनारकाणामुपपावः।।34।। सूत्रार्थ - देव और नारकियों का उपपाद जन्म होता है।।34।।
. शेषाणां सम्मूर्छनम्।।35।। सूत्रार्थ - शेष सब जीवों का सम्मूर्छन जन्म होता है।।35।।
जन्म (पूर्व शरीर का त्याग कर नये शरीर का ग्रहण करना)
गर्भ ..(माता-पिता के रंज व वीर्य से)
उपपाद
सम्मूर्छन (अंतर्मुहूर्त में शरीर पूर्ण (सब ओर से परमाणु युवा हो जाता है) ग्रहण कर शरीर की रचना)
जरायुज अंडज पोत . (जेर लिपटे (अंडे से (बिना आवरण
हुए जरायु से पैदा होते पैदा होते ही . पैदा होते हैं) हैं) चलने लगते हैं) -जैसे - गाय, हाथी चील, कबूतर सिंह, नेवला देव व नारकी शेष जीव
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