SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय अध्याय संसारिणी मुक्ताश्च ।।10।। सूत्रार्थ - जीव दो प्रकार के हैं - संसारी और मुक्त ।।10।। समनस्कामनस्काः ॥11॥ सूत्रार्थ - मनवाले और मनरहित ऐसे संसारी जीव हैं ।।11।। जीव 28 संसारी (कर्म सहित ) समनस्क * मन सहित स्वामी - * चारों गति के जीव मुक्त (कर्म रहित) अमनस्क * मन रहित * सिर्फ तिर्यंच संसारिणस्त्रसस्थावराः ||12|| सूत्रार्थ - (तथा) संसारी जीव त्रस और स्थावर के भेद से दो प्रकार हैं ।।12।। पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः ।। 13 || सूत्रार्थ पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक - ये पाँच स्थावर हैं ।।13।। द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः ||14|| सूत्रार्थ - दो इन्द्रिय आदि त्रस हैं ।।14।। सूत्र क्रमांक 15 से 21 तक के लिए आगे देखें ! वनस्पत्यन्तानामेकम् ||22|| सूत्रार्थ - वनस्पतिकायिक तक के जीवों के एक अर्थात् प्रथम इन्द्रिय होती है ||22|| Jain Education International कृमिपिपीलिका भ्रमरमनुष्यादीनामेकैकवृद्धानि || 23 || सूत्रार्थ - कृमि, पिपीलिका, भ्रमर और मनुष्य आदि के क्रम से एक-एक इन्द्रिय अधिक होती है ।। 23 ।। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy