________________
11
प्रथम अध्याय
अवग्रहेहावायधारणाः।।15।। सूत्रार्थ - अंवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा - ये मतिज्ञान के चार भेद हैं।।15।।
मतिज्ञान के भेद
अवग्रह स्वरूप सर्वप्रथम
निर्णय
जानना
ईहा
अवाय धारणा | इच्छा
| भूलना नहीं अभिलाषा संशय-विस्मरण | संशय तो नहीं, न संशय, हो जाता है | पर विस्मरण | न विस्मरण
होता है होता है ।
कालांतर
बहुबहुविधक्षिप्रानिःसृतानुक्तधुवाणां सेतराणाम्।।16।। सूत्रार्थ - सेतर (प्रतिपक्षसहित) बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनि:सृत, अनुक्त और ध्रुव के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा रूप मतिज्ञान होते हैं।।16।।
अर्थस्य||17॥ सूत्रार्थ - अर्थ (वस्तु के) अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा - ये चारों मतिज्ञान होते हैं।।17।।
पदार्थों के भेद
बहु (1) बहु विध(2) क्षिप्र(3) अनिःसृत(4)अनुक्त(5)ध्रुव(6) (बहुत (बहुत प्रकार (शीघ्र) (गूढ़) (बिना (अचल/बहुत पदार्थ) के पदार्थ)
__ कहा) काल स्थायी)
अल्प(7) एक विध(8)अक्षिप्र(9) निःसृत(10) उक्त(11)अध्रुव(12) (अल्प (एक प्रकार (मंद) (प्रकट) (बताया (चंचल/ पदार्थ) के पदार्थ) .
हुआ) विनाशीक)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org