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________________ प्रथम अध्याय ज्ञान सम्बन्धी प्रयोजनभूत विचार| मति-भूत ज्ञान केवलज्ञान 1.हमारा वर्तमान प्रकट ज्ञान 1. हमारा स्वभाव . 2. पराधीन 2. स्वाधीन | 3. क्रमिक - इन्द्रियों द्वारा पदार्थों 3. युगपत् - सम्पूर्ण पदार्थों को को क्रम से जानता है इन्द्रिय बिना एकसाथ जानता है 4. क्षणिक - क्षायोपशमिक होने से क्षणिक है| 4. शाश्वत - क्षायिक होने से शाश्वत रहता है 5. घटता-बढ़ता है 5. एक जैसा रहता है | 6. इन्द्रियज ज्ञान है 6. अतीन्द्रियज ज्ञान है मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनान्तरम्।।13।। सूत्रार्थ - मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध - ये पर्यायवाची नाम हैं।।13॥ मतिज्ञान के अन्य नाम मति स्मृति संज्ञा चिन्ता अभिनिबोध (इन्द्रिय और (स्मरण) (जोड़रूप ज्ञान) (तर्क-व्याप्ति) (अनुमान) मन की सहायता) तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम्।।14।। सूत्रार्थ - वह (मतिज्ञान) इन्द्रिय और मन के निमित्त से होता है।।14।। मतिज्ञान की उत्पत्ति 5 इन्द्रिय इन्द्रिय (आत्मा की पहचान के चिह्न) मन अनिन्द्रिय/नो इन्द्रिय (किंचित् इन्द्रिय) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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