SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्याय . नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यासः।।5।। सूत्रार्थ - नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव रूप से उनका अर्थात् सम्यग्दर्शन आदि और जीव आदि का न्यास अर्थात् निक्षेप होता है।।5।। निक्षेप (लोक अथवा आगम में शब्द व्यवहार करने की पद्धति) द्रव्य भाव स्वरूप | जिस पदार्थ में | “वह यह है" जो गुणों को वर्तमान जो गुण नहीं, इस प्रकार | प्राप्त हुआ था पर्याय उसको उस नाम बुद्धि से अथवा गुणों | संयुक्त | से कहना । अभेद करना को प्राप्त होगा वस्तु उदाहरण वीरता न होने महावीर की राजकुमार अनंत चतुष्टय पर भी महावीर | प्रतिमा को वर्द्धमान को युक्त को नाम रखना | महावीर कहना | 'महावीर | भगवान भगवान' महावीर' कहना प्रमाणनयैरधिगमः।।6।। सूत्रार्थ - प्रमाण और नयों से पदार्थों का ज्ञान होता है।।6।। | कहना संक्षिप्त रुचि शिष्यों के लिए - पदार्थों को जानने के उपाय __ _ प्रमाण * सच्चा ज्ञान * पदार्थ को सर्वदेश ग्रहण करता है। * श्रुत ज्ञान का अवयव (अंश) - * पदार्थ का एकदेश ग्रहण करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy