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आज्ञापायविपाकसंस्थानविचयाय धर्म्यम् ||36 ।।
सूत्रार्थ - आज्ञा, अपाय, विपाक और संस्थान - इनकी विचारणा के निमित्त
मन को एकाग्र करना धर्म्यध्यान है । 1361 धर्म्य ध्यान
नवम अध्याय
नाम आज्ञाविचय
अपायविच
स्वरूप जिनेन्द्रदेव की ये प्राणी मिथ्यादर्शनादि कर्म के
फल का
आज्ञा प्रमाण से कैसे दूर होंगे, ऐसा निरन्तर चिन्तन करना यथायोग्य 4 से 7
मिथ्यादृष्टि के धर्म भावना होती है, धर्म्य ध्यान नहीं
个
गुणस्थान ←
विपाकविचय संस्थानविचय
लोक के
आकार का
शुक्ले चाद्ये पूर्वविदः ||37।।
सूत्रार्थ - आदि के दो शुक्ल ध्यान पूर्वविद् के होते हैं ।। 37 ।। ' परे केवलिनः ॥38॥
सूत्रार्थ - शेष के दो शुक्लध्यान केवली के होते हैं ।। 38 ।। पृथक्त्वैकत्ववितर्क सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवतींनि ॥39॥ सूत्रार्थ - पृथक्त्ववितर्क, एकत्ववितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरत - क्रियानिवर्ति - ये चार शुक्लध्यान हैं ।। 39 ||
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. त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम् ||40||
सूत्रार्थ - वे चार ध्यान क्रम से तीन योग वाले, एक योग वाले, काय योग वाले और अयोग के होते हैं। । 40॥
एकाश्रये सवितर्कवीचारे पूर्वे ।। 41 ॥
सूत्रार्थ - पहले के दो ध्यान एक आश्रय वाले, सवितर्क और सवीचार होते
हैं।।41॥
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• दूसरा ध्यान अवीचार है ।। 4211
अवीचारं द्वितीयम् ||42||
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