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नवम अध्याय
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आर्त - रौद्र ध्यान नाम | आतध्यान | रौद्र ध्यान स्वरूप दुःख चिंतन पाप में आनंद फल तिर्यंच गति
नरकगति गुणस्थान 1-6 (छठे में निदान नहीं) 1-5 भेद निरंतर चिंता करना आनंद मानना
अनिष्ट संयोगज | हिंसानंदी *अप्रिय संयोग को || * हिंसा में
दूर करने की . मृषानंदी -इष्टवियोगज * प्रिय के वियोग में || चौर्यानंदी
उसकी प्राप्ति की ।। * चोरी में -वेदना
L परिग्रहानंदी/ * रोग दूर करने की विषयानंदी | निदान
* पाँच इन्द्रिय के भोगों में * आगामी भोगों की
प्राप्ति की
* झूठ में
निदान निवान शल्य
निवान आर्तध्यान * निरंतर सताती है * कभी-कभी होता है
* कषाय की तीव्रता * कषाय कम-तीव्र स्वामी- * अव्रती
* अव्रती व देशव्रती
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