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________________ नवम अध्याय 202 . वाचनापृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः।।25।। सूत्रार्थ - वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश - यह पाँच प्रकार का स्वाध्याय है।।25।। स्वाध्याय वाचना - पृच्छना अनुप्रेक्षा आम्नाय धर्मोपदेश पढ़ना पूछना चिंतन पुनः-पुनः दोहराना उपदेश देनाः ' बाह्याभ्यन्तरोपध्योः।।26॥ सूत्रार्थ- बाह्य और अभ्यन्तर उपधि का त्याग -यह दो प्रकार का व्युत्सर्ग है।।26॥ व्युत्सर्ग बाह्य * आत्मा से भिन्न मकान, पुत्रादि का त्याग अभ्यन्तर *क्रोधादिरूप आत्मभाव का त्याग * शरीर के ममत्व का त्याग उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानमान्तर्मुहूर्तात्।।27।। सूत्रार्थ - उत्तम संहननवाले का एक विषय में चित्तवृत्ति का रोकना ध्यान है, जो अन्तर्मुहूर्त काल तक होता है।।27। ध्यान (एक विषय में चित्त का रुकना) * ध्याता | ध्यान करने वाला - उत्तम संहनन सहित(शुरू के तीन संहनन) * ध्येय |जिसका ध्यान किया जाए - एक अग्र (प्रधान विषय) * ध्यान ज्ञान में व्यग्रता का अभाव * ध्यान अंतर्मुहूर्त | का काल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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