SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवम अध्याय 199 प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम्।।20।। सूत्रार्थ - प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान - यह छह प्रकार का आभ्यन्तर तप है।।20। नवचतुर्दशपञ्चद्विभेदा यथाक्रमं प्रारध्यानात्।।21।। सूत्रार्थ - ध्यान से पूर्व के आभ्यन्तर तपों के अनुक्रम से नौ, चार, दश, पाँच और दो भेद हैं।।21॥ आभ्यंतर तप नाम प्रायश्चित्त विनय वैयावृत्त्य । स्वाध्याय व्युत्सर्ग ध्यान । स्व- प्रमाद से -ज्ञानादि अन्य मुनियों ज्ञान की अहंकार- चित्त की रूप लगे दोषों का बहुमान की संयम | आराधना ममकार चंचलता को दूर -पूज्य साधना के | करना का त्याग का त्याग करना पुरुषों निमित्त .. का आदर सेवा करना भेद 94 | 10524 लाभ | -दोषों का -ज्ञान की | -समाधि की - बुद्धि में -निःसंगता कर्मों शोधन प्राप्ति प्राप्ति | अतिशय -निर्भयता का क्षय -मर्यादा में | -आचारकी | -ग्लानि का | प्रकट |-जीवित रहना | विशुद्धता | अभाव | होना । | रहने की -भावों में -सम्यक् |-प्रवचन में |-संशय आशा का उज्ज्वलता आराधना | वात्सल्य | दूर होना | अभाव की सिद्धि |-अतिचारों में विशुद्धि -संसारादि से विरक्तता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy