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________________ 198 नवम अध्याय तपकरना 198 बाह्य तप नाम | अनशन | अवमौदर्य वृत्तिपरि- रस विविक्त कायक्लेश | | ऊनोदर संख्यान परित्याग शय्यासन | | 4 प्रकार दिन में एक | अनेक प्रकार 1,2 आदि एकांत अनेक प्रकार के आहार, बार भूख की अटपटी 6रसों तक स्थान में के काय के विषय |से कम प्रतिज्ञाओं | का त्याग सोना- कष्ट रूप व कषाय आहार की पूर्ति पर करना बैठना का त्याग करना भोजन करना -संयम की -संयम की -आशा की |-इन्द्रियों |-बाधारहित -सुख किया | सिद्धि | जागृति | निवृत्ति पर विजय ब्रह्मचर्य, | विषयक जाता | -राग का -संतोषएवं -परम संतोष-निद्रापर |स्वाध्याय, आसक्ति है ? | नाश स्वाध्याय की सिद्धि विजय ध्यान की | कम करने | -ध्यान, की सिद्धि के लिए -स्वाध्याय प्रसिद्धि के लिये आगम के लिए की सिद्धि के लिए -प्रवचन के लिए प्रभावना के लिए क्यों की प्राप्ति के लिये 4 प्रकार का आहार खाद्य रोटी आदि पेय पानी आदि लेह्य स्वाद्य चटनी आदि सौंफ-इलायची आदि 6 प्रकार के रस घी दूध तेल खांड, गुड़ आदि नमक दही. . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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