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नवम अध्याय
अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्रवसंवरनिर्जरालोकबोधिदुर्लभधर्म
स्वाख्यातत्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः ॥ 7 ॥
सूत्रार्थ - अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्मस्वाख्यातत्व का बार-बार चिन्तन करना अनुप्रेक्षाएँ हैं ।। 7 ।। अनुप्रेक्षा ( भावना) - बारम्बार चिंतन करना वैराग्य प्रेरक 6 भावनाएँ
नाम
1. अनित्य क्षणभंगुरता
अशरणता
निरर्थकता
निःसंगता
संयोगों संबन्धी चिंतन
2. अशरण
3. संसार
4. एकत्व
5. अन्यत्व
पृथक्ता 6. अशुचि अपवित्रता
तत्त्व प्रधान 6 भावनाएँ
नाम
7. आस्रव
8. संवर
9. निर्जरा
10. लोक
11. बोधिदुर्लभ 12. धर्म
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आत्मा संबन्धी चिन्तन
नित्यता- स्थायीपना
शरणभूतत्व
सार्थकता
संगता
एकता
पवित्रता
किनका चिंतन ?
विकारी संयोगी भावों का
संवर के गुणों का
निर्जरा के गुणों का
लोक के स्वभाव का
रत्नत्रय की दुर्लभता का
मोक्ष प्राप्ति के उपाय का
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