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निश्चय से
निजात्मा में लीनता रूप वीतराग भाव
भेद 3
नवम अध्याय
संवर के कारण
| गुप्ति समिति | धर्म | अनुप्रेक्षा | परीषहजयं चारित्र | तप
स्वरूप निवृत्तिं यत्नाचार उत्तम शरीरादिक क्षुधादि संसार इच्छाओं स्थान के स्वभाव वेदना को परिभ्रमण का
(संसार रूप
| के प्रवृत्ति
कारणों
से आत्मा
की रक्षा
करना
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में धरे का बारबार चिंतन रहित
सहना
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द्रव्य बँधे कर्मों का एकदेश
खिरना (नाश होना)
12
निर्जरा
व्यवहार से
संक्लेशता की कारण रुकना
रूप क्रिया
का अभाव
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भाव जीव के परिणाम
जिनसे कर्म खिरते हैं
निर्जरा का कारण
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तप
शुद्ध आत्मस्वरूप में प्रतपन अर्थात् विजय करना
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