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________________ नवम अध्याय 187 -प्रत्याख्याना प्रत्याख्यानावरण 4 कषाय |वरण संबंधी 3. प्रमाद मोहनीय = 2 अरति, शोक वेदनीय = 1| असाता वेदनीय नाम = 3| अस्थिर, अशुभ, अयशःकीर्ति कुल = 6 8 | आयु = 1| देवायु(प्रमाद के नजदीक का अप्रमाद भी बंध का कारण है) 4. कषाय मोहनीय = 4/ हास्य, रति, भय, जुगुप्सा (प्रमाद दर्शनावरण=2| निद्रा, प्रचला रहित) नाम =30| पंचेन्द्रिय जाति, 4 शरीर, 2 -तीव्र कुल = 36| अंगोपांग, समचतुरस्र संस्थान, वर्णादि 4, जोड़ों की 9 प्रशस्त प्रकृति, 6 प्रत्येक प्रकृति, प्रशस्त विहायोगति -मध्यम | 10 | मोहनीय = 5| संज्वलन 4 कषाय, पुरुषवेद -जघन्य 16 ज्ञानावरण 5; अंतराय 5, दर्शनावरण 4, उच्च गोत्र, यशःकीर्ति 5. योग - 14 1 साता वेदनीय 9 स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रः।।2।। . सूत्रार्थ - वह संवर गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय और चारित्र से होता है।।2।। .. तपसा निर्जरा च।।3।। सूत्रार्थ - तप से निर्जरा होती है और संवर भी होता है।।3।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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