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नवम अध्याय
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गुणस्थान (मोह और योग के निमित्त से होने वाली जीव की अवस्था विशेष) गुणस्थान का नाम | स्वरूप का 1. मिथ्यादृष्टि |जिसके मिथ्यादर्शन पाया जाता है। 2.सासादन | सम्यक्त्व से च्युत होकर भी मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं
सम्यग्दृष्टि हुआ। दृष्टि अनुभय रूप है। B. सम्यग्मिथ्यादृष्टि | | जिसकी दृष्टि सम्यक्त्व व मिथ्यात्व उभयरूप है। 4. अविरत सम्यग्दृष्टि सम्यग्दृष्टि होकर जो अविरति है। 5. देशविरत स्थावर हिंसा से विरत न होकर भी त्रस हिंसा से
(व्रती श्रावक) | विरत है। 6. प्रमत्तसंयत(मुनि) प्रमाद सहित संयमभाव पाया जाता है। 7. अप्रमत्तसंयत प्रमाद रहित संयमभाव पाया जाता है। 8. अपूर्वकरण जहाँ पहले नहीं प्राप्त हुए, ऐसे परिणाम (करण) प्राप्त
होते हैं।
9. अनिवृत्तिकरण | जहाँ एक समय वालों के परिणामों में भेद नहीं होता है। 10. सूक्ष्म लोभ जहाँ सिर्फ लोभ कषाय अत्यंत सूक्ष्म रह जाती है। 11. उपशांत मोह | जहाँ सम्पूर्ण मोह दब जाता है। 12. क्षीणमोह जहाँ सम्पूर्ण मोह का क्षय हो जाता है। 13. सयोग केवली | जहाँ केवलज्ञान के साथ योग पाया जाता है।
. (अरहत) 14. अंयोग केवली | जहाँ केवलज्ञान के साथ योग का अभाव है। गुणस्थानातीत जहाँ द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म तीनों का अभाव है। (सिद्ध)
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