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आस्रवनिरोधः संवरः।।1।। सूत्रार्थ - आस्रव का निरोध संवर है।।1।।
संवर(आस्रव का रुकना)
भाव
द्रव्य कर्मों का आना रुकना
संसार के निमित्तभूत परिणामों की निवृत्ति
संवर दूसरे गुणस्थान से प्रारम्भ होकर आगे-आगे बढ़ता जाता है।
इसलिए यहाँ 'गुणस्थान' का स्वरूप दिया जा रहा है :
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