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________________ अष्टम अध्याय 179 फल दान शक्ति की तारतम्यता घातिया अघातिया पाप -लता (बेल) निम्ब -दारू (काष्ठ) काजीर - अस्थि (हड्डी) -विष -शैल (पत्थर) –हलाहल पुण्य -गुड़ -खाण्ड शर्करा (मिश्री) __L अमृत निर्जरा . सविपाक अविपाक/सकाम अकाम *कर्म का स्थिति * स्थिति बिना पूर्ण हुए *इच्छा बिना भूखपूर्ण होने पर फल तपादि द्वारा बीच में प्यासादि को मंद देकर खिरना ही कर्मों को खिपा देना कषाय से सहना * यहाँ पाप की निर्जरा व पुण्य का बंध होता है नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाहस्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशाः।।24।। सूत्रार्थ - कर्म प्रकृतियों के कारणभूत प्रति समय योग विशेष से सूक्ष्म, एकक्षेत्रावगाही और स्थित अनन्तानन्त पुद्गल परमाणुसब आत्मप्रदेशों में (सम्बन्ध को प्राप्त) होते हैं।।24।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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