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________________ 180 . अष्टम अध्याय *कब प्रदेश बंध * किस रूप? ज्ञानावरणादिरूप संसारी जीवों को सदा (सभी भवों में) *किस कारण से योग की न्यूनाधिकता से * किसमें सभी आत्मप्रदेशों में (दूध में पानीवत्) *कैसे स्वभाव वाला | सूक्ष्म एक क्षेत्रावगाही (आत्मा के प्रदेशों पर ही स्थित) * कितनी स्थिति वाले 1 समय से असंख्यात समय की *कितना अनंत परमाणु (जघन्यपने अभव्य राशि से अनंतगुणा व उत्कृष्टपने सिद्ध राशि का अनंतवाँ भाग) सद्वेद्यशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम्।।25।। सूत्रार्थ - साता वेदनीय, शुभ आयु, शुभ नाम और शुभ गोत्र - ये प्रकृतियाँ पुण्यरूप हैं।।25।। अतोऽन्यत्पापम्।।26|| . सूत्रार्थ - इनके सिवा शेष सब प्रकृतियाँ पापरूप हैं।।26।। पुण्य-पाप प्रकृति विभाजन य 100 168 अनुभाग अपेक्षा | 68 स्थिति अपेक्षा | 3(3 आयु) 145 148 कुल कर्म प्रकृति- 148 + 20 = 168 (वर्णादि प्रशस्त व अप्रशस्त दोनों होते हैं) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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