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उत्तर प्रकृति
नाम
- संस्थान और संहनन
- हुण्डक संस्थान, असंप्राप्तासृपाटिका संहनन
- आगे - 2 एक - 2 संस्थान व संहनन की 2 कोड़ाकोड़ी सागर कम - 2 होती जाती है - आहारक शरीर, आंहारक अंगोपांग, तीर्थंकर - देवगति व आनुपूर्वी, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर आदेय, यशः कीर्ति, प्रशस्त विहायोगति
-
मनुष्य गति व आनुपूर्वी
- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चौइंन्द्रिय जाति, सूक्ष्म,
अष्टम अध्याय
अपर्याप्त, साधारण
- शेष 35 प्रकृतियाँ
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ततश्च निर्जरा || 23 |
सूत्रार्थ - इसके बाद निर्जरा होती है ।। 231
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अंतः
विपाकोऽनुभवः ।। 21 ।।
सूत्रार्थ - विपाक अर्थात् विविध प्रकार के फल देने की शक्ति का पड़ना ही
अनुभव है || 21 |
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स यथानाम ||22||
सूत्रार्थ - वह जिस कर्म का जैसा नाम है, उसके अनुरूप होता है ।। 22 ।।
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