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कर्म
अष्टम अध्याय
मूल कर्म जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति बंध व
आबाधा
उत्कृष्ट
(सागर में)
नाम
गोत्र
आयु
ज्ञानावरण 30 कोड़ाकोड़ी अंतर्मुहूर्त
दर्शनावरण
अंतराय
मोहनीय 70 कोड़ाकोड़ी
वेदनीय
30 कोड़ाकोड़ी 20 कोड़ाकोड़ी
स्वामी
स्थिति बंध
33 मात्र
जघन्य
12 मुहूर्त 8 मुहूर्त
अंतर्मुहूर्त
*संज्ञी पंचेन्द्रिय *आयु बिना शेष पर्याप्त मिथ्यादृष्टि 7 क्षपक श्रेणी में * उत्कृष्ट देवायु को आयु मिथ्यादृष्टि
सकल संयमी ही मनुष्य व तिर्यंच बाँध सकता है।
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आबाधा
उत्कृष्ट
3000 वर्ष
7000 वर्ष
3000 वर्ष
2000 वर्ष
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धन्य (उरणा
अपेक्षा)
1 आवली
1कोटिपूर्व / 3 आवली / असंख्यात
1. आबाधा - जितने काल तक कर्म फल नहीं देता ।
2. आवली = असंख्यात समय
3. एक श्वास में संख्यात हजार कोड़ाकोड़ी आवलियाँ होती हैं।
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