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________________ 174 . अष्टम अध्याय · आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोट्यः परा स्थितिः।।14। सूत्रार्थ - आदि की तीन प्रकृतियाँ अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण और वेदनीय तथा अन्तराय इन चार की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटि सागरोपम है।।14।। सप्ततिर्मोहनीयस्य।।15॥ सूत्रार्थ - मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटाकोटि सागरोपम है।।15।। .. विंशतिर्नामगोत्रयोः।।16।। सूत्रार्थ - नाम और गोत्र की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटाकोटि सागरोपम है।।16।। त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यायुषः।।17।। सूत्रार्थ - आयु की उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम है।।17। __ अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य।।18।। सूत्रार्थ - वेदनीय की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है।।18।। नामगोत्रयोरष्टौ॥19॥ सूत्रार्थ - नाम और गोत्र की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त है।।1।। शेषाणामन्तर्मुहूर्ता।।20।। पूत्रार्थ - बाकी के पाँच कर्मों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है।।20।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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