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अष्टम अध्याय
अपर्याप्त
लब्धि
निर्वृत्ति * पर्याप्त नामकर्म का उदय * अपर्याप्त नाम कर्म का उदय * शरीर पर्याप्ति जब तक *एक भी पर्याप्ति पूर्ण न हो पूर्ण न हो, पर नियम से पूर्ण होगी और न होने वाली हो
उच्चैनीचैश्च।।12।। सूत्रार्थ - उच्चगोत्र और नीचगोत्र - ये दो गोत्रकर्म हैं।।12।।
गोत्र
उच्च * लोक पूजित कुल में जन्म हो
नीच * निन्दित कुल में जन्म हो
- दानलाभभोगोपभोगवीर्याणाम्।।13।। सूत्रार्थ -दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य - इनके पाँच अन्तराय हैं।।13।।
अंतराय
दानान्तराय लाभान्तराय भोगान्तराय उपभोगान्तराय वीर्यान्तराय *देने की इच्छा *प्राप्ति की *भोगने की *उपभोगने की शक्ति प्रकट करता हुआ इच्छा रखता इच्छा करता इच्छा करता करने की इच्छा भी नहीं देता हुआ भी नहीं हुआ भी नहीं हुआ भी नहीं हो, पर शक्ति
प्राप्त करता भोग सकता उपभोग सकता प्रकट न हो
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