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________________ 172 अष्टम अध्याय | 10 जोड़े। शभ | प्रत्येक | एक शरीर, एक स्वामी | साधारण एक शरीर, अनेक स्वामी शरीर | शरीर (इनका उदय निगोदिया जीव को ही होता है) त्रस द्वीन्द्रियादि में जन्म हो | स्थावर | एकेन्द्रियों में उत्पत्ति हो . सुभग | दूसरे जीव अपने से दुर्भग | दूसरे जीव अपने से प्रीति | प्रीति करें न करें । सुस्वर | अच्छा स्वर हो दुस्वर | अच्छा स्वर न हो। | शरीर के अवयव सुन्दर हों अशुभ शरीर के अवयव सुन्दर न हों. बादर | दूसरों को रोके व दूसरों | सूक्ष्म | न किसी को रोके, न रुके केद्वारा रुके, ऐसा शरीर हो ऐसा शरीर हो पर्याप्त अपने-2 योग्य पर्याप्तियाँ अपर्याप्त एक भी पर्याप्ति पूर्ण न हो पूर्ण हों शरीर की धातु-उपधातु | अस्थिर | शरीर की धातू-उपधात | अपने ठिकाने रहे अपने ठिकाने न रहे आदेय | प्रभा सहित शरीर उपजे | अनादेय | प्रभा रहित शरीर उपजे | संसार में यश हो रहा है | अयशः | अपयश हो रहा है, ऐसा जीव -कीर्ति | ऐसाजीव के द्वारा मानाजाना -कीर्ति | के द्वारा माना जाना यशः पर्याप्ति (आहारादि वर्गणा के परमाणुओं को शरीरावि रूप परिणमाने की जीव की शक्ति की पूर्णता) । । आहार शरीर इन्द्रिय श्वासोच्छ्वास भाषा मनः ये छः पर्याप्तियाँ एक साथ प्रारम्भ हो क्रम से पूर्ण होती हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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