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________________ अष्टम अध्याय 171 8 प्रत्येक प्रकृति नमाण गुलघु उपधात परघात आतप उद्योत उच्छवासा तीर्थका स्वरूप अंगोपांग शरीर भारी अपना ही दूसरे का शरीर शरीर श्वासो- | अर्हन्त की व हल्का घात करने घात करने की की च्छ्वास पद यथास्थानान हो वाले अंग वाले आभा आभा हो । के साथ यथाप्रमाण हो अंगोपांग उष्ण शीत | धर्मतीर्थ रचना हो । हो हो हो प्रवर्तन हो किन्हें उदय सभी को सभी को सभी को सभी त्रस पर्याप्त पर्याप्त श्वासो- | केवली बादर च्छ्वास विग्रहगति को शरीर बादर तिर्यंचों के बाद पर्याप्ति को को पूरी होने के बाद (किन्हीं-2को)| पर होता आतप, उद्योत, उष्ण नामकर्म । आतप उद्योत । . उष्ण आभा | गर्म | ठंडा | गर्म मूल (शरीर) ठंडा | ठंडा - गर्म सूर्य चन्द्रमा । अग्निकायिक का विमान| का विमान | का शरीर .. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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