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अष्टम अध्याय
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8 प्रत्येक प्रकृति नमाण गुलघु उपधात परघात आतप उद्योत उच्छवासा तीर्थका स्वरूप अंगोपांग शरीर भारी अपना ही दूसरे का शरीर शरीर श्वासो- | अर्हन्त
की व हल्का घात करने घात करने की की च्छ्वास पद यथास्थानान हो वाले अंग वाले आभा आभा हो । के साथ यथाप्रमाण हो अंगोपांग उष्ण शीत | धर्मतीर्थ रचना हो ।
हो हो हो प्रवर्तन हो
किन्हें
उदय सभी को सभी को सभी को सभी त्रस पर्याप्त पर्याप्त श्वासो- | केवली
बादर च्छ्वास विग्रहगति को शरीर बादर तिर्यंचों के बाद पर्याप्ति को को पूरी होने
के बाद (किन्हीं-2को)| पर
होता
आतप, उद्योत, उष्ण नामकर्म
। आतप उद्योत । . उष्ण आभा | गर्म | ठंडा | गर्म मूल (शरीर) ठंडा | ठंडा
- गर्म सूर्य चन्द्रमा । अग्निकायिक का विमान| का विमान | का शरीर ..
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