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________________ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org नाम भेद स्वरूप (प्रकृति) इसके अभाव में कौन-सा घातिया कर्म (आत्मा के अनुजीवी गुणों को घाते) ज्ञानावरण दर्शनावरण अतराय मोहनीय 5 5 28 जीव के ज्ञान को दृष्टांत मूर्ति पर पड़ा पर्दा अनंत गुण प्रकट ज्ञान होता है 9 जीव के दर्शन को आवृत करें (ढकें) द्वारपाल प्रकृति बंध (आठ मूल कर्म, अनंत दर्शन वीर्य को खजांची अनंत वीर्य सम्यक्त्व व चारित्र को घाते मदिरा अनंत सुख आयु 4 - शरीर में रोके रखे बेड़ी अघातिया कर्म (प्रतिजीवी गुणों को घाते) अवगाहनत्व नाम गोत्र 42 2 - शरीरादि करवाये Taa चित्रकार सूक्ष्मत्व जीव को | - गत्यादि रूप - उच्च-नीच -आकुलता हो परिणमावे पना प्राप्त वदनाथ 2 कुम्भकार 160 शहद लपेटी तलवार की धार अगुरुलघुत्व अव्याबाधत्व
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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