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________________ अष्टम अध्याय 159 आद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नामगोत्रान्तरायाः।।4।। सूत्रार्थ - पहला अर्थात् प्रकृतिबन्ध ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय रूप है।।4।। पञ्चनवद्व्यष्टाविंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशद्विपञ्चभेदा यथाक्रमम्।।5।। सूत्रार्थ -आठ मूल प्रकृतियों के अनुक्रम से पाँच, नौ, दो, अट्ठाईस, चार, ब्यालीस,दो और पाँच भेद हैं।।5।। 1-कर्म कर्म के भेद सामान्य से 2-घातिया कर्म-अघातिया कर्म 3-द्रव्यकर्म, भाव कर्म, नो कर्म | मूल प्रकृति | उत्तर प्रकृति 148 (संख्यात) | भावों की अपेक्षा असंख्यात परमाणुओं की अपेक्षा | अनंत | अविभाग प्रतिच्छेद अपेक्षा अनंतानंत द्रव्य कर्म क्या?→ जीव के रागादि परिणामों के निमित्त से जो कार्मण वर्गणा जीव के साथ संबंध को प्राप्त होती हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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