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________________ 158 अष्टम अध्याय द्रव्यकर्म-भावकर्म निमित्त-उपादान कार्य उपावान कारण(कर्ता) निमित्त कारण (स्वयं कार्य रूप परिणमे) (स्वयं कार्य रूप न परिणमे, पर कार्य की उत्पत्ति में सहायक हो) द्रव्य बंध कार्मण वर्गणा जीव के योग व कषाय (द्रव्य कर्म) भाव बंध जीव के योग कषाय की उदय/उदीरणा को (भाव कर्म) | पूर्व पर्याय | प्राप्त कर्म दृष्टातघड़ा | मिट्टी कुम्भकार HARACTES प्रकृतिस्थित्यनुभवप्रदेशास्तद्विधयः।।3।। सूत्रार्थ - उसके प्रकृति, स्थिति, अनुभव और प्रदेश - ये चार भेद हैं।।3।। बंध | नाम प्रकृति प्रवेश स्थिति अनुभाग स्वरूप | स्वभाव परमाणुओं | आत्मा के साथ | फल दान देने की (कर्म का... की संख्या । रहने की मियाद । हीनाधिक शक्ति कर्म का द्रव्य क्षेत्र | काल भाव कारण योग से कषाय से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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