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अष्टम अध्याय
द्रव्यकर्म-भावकर्म निमित्त-उपादान कार्य उपावान कारण(कर्ता) निमित्त कारण (स्वयं कार्य रूप परिणमे) (स्वयं कार्य रूप न परिणमे, पर
कार्य की उत्पत्ति में सहायक हो) द्रव्य बंध कार्मण वर्गणा जीव के योग व कषाय (द्रव्य कर्म) भाव बंध जीव के योग कषाय की उदय/उदीरणा को (भाव कर्म) | पूर्व पर्याय
| प्राप्त कर्म दृष्टातघड़ा | मिट्टी
कुम्भकार
HARACTES
प्रकृतिस्थित्यनुभवप्रदेशास्तद्विधयः।।3।। सूत्रार्थ - उसके प्रकृति, स्थिति, अनुभव और प्रदेश - ये चार भेद हैं।।3।।
बंध | नाम प्रकृति प्रवेश स्थिति अनुभाग स्वरूप | स्वभाव परमाणुओं | आत्मा के साथ | फल दान देने की (कर्म का... की संख्या । रहने की मियाद । हीनाधिक शक्ति कर्म का द्रव्य क्षेत्र | काल भाव
कारण
योग से
कषाय से
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