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अष्टम अध्याय सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्ते स बन्धः।।2।। सूत्रार्थ - कषाय सहित होने से जीव कर्म के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है,
वह बंध है।।2।।
* क्या हो रहा है? * किसका ? * किसे ? * कब से ?
बंध क्या है → बंध → योग्य कार्मण वर्गणा का (पुद्गल का) → कषाय सहित जीव को (संसारी मूर्तिक जीव) → अनादि से
...
कर्म बंध चक्र पूर्व बँधे द्रव्य कर्म
यहाँ जीव कर्म का उदय
के मंद उदय में पुरुषार्थ से इस चक्र को रोक
सकता है। जीव भावकर्म करता (मोह-रागादि)
नवीन द्रव्य कर्म बंध होता
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