SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तम अध्याय 145 अतिचार शङ्काकाङ्क्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवाः सम्यग्दृष्टेरतिचाराः।।23।। सूत्रार्थ - शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, अन्यदृष्टिप्रशंसा और अन्यदृष्टिसंस्तव -ये सम्यग्दृष्टि के पाँच अतिचार हैं।।23।। सम्यग्दर्शन के अतिचार शंका कांक्षा विचिकित्सा अन्यदृष्टि *आत्मा को * इस लोक * दुःखी, रोगी * मिथ्यादृष्टि का ज्ञान, अखण्ड परलोक में दरिद्री इत्यादि चारित्र आदि को देख अविनाशी भोगादिक मनुष्य, तिर्यंच । । जानकर भी सामग्री की और मुनिराज प्रशंसा संस्तव 7 प्रकार के वांछा होना के शरीर को .. * मन में - * वचनों से भय को देख ग्लानि भलाजानना प्रशंसा करना प्राप्त होना करना - सम्यग्दृष्टि को इन दोषों का खेव हो और ये यवा-कवा हों तो ये अतिचार हैं, अन्यथा अनाचार होते हैं। वतभंग के लिए सहायक परिणाम अतिक्रम व्यतिक्रम * मन में व्रतभंग *व्रत का उल्लंघन का विचार उठना करना अतिचार *विषयों में प्रवृत्ति अनाचार * विषयों में अतिशय आसक्तिरूप प्रवृत्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy