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सप्तम अध्याय
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अतिचार
शङ्काकाङ्क्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवाः
सम्यग्दृष्टेरतिचाराः।।23।। सूत्रार्थ - शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, अन्यदृष्टिप्रशंसा और अन्यदृष्टिसंस्तव -ये सम्यग्दृष्टि के पाँच अतिचार हैं।।23।।
सम्यग्दर्शन के अतिचार
शंका कांक्षा विचिकित्सा अन्यदृष्टि *आत्मा को * इस लोक * दुःखी, रोगी * मिथ्यादृष्टि का ज्ञान, अखण्ड परलोक में दरिद्री इत्यादि चारित्र आदि को देख अविनाशी भोगादिक मनुष्य, तिर्यंच । । जानकर भी सामग्री की और मुनिराज प्रशंसा संस्तव 7 प्रकार के वांछा होना के शरीर को .. * मन में - * वचनों से भय को
देख ग्लानि भलाजानना प्रशंसा करना प्राप्त होना करना - सम्यग्दृष्टि को इन दोषों का खेव हो और ये यवा-कवा हों तो ये
अतिचार हैं, अन्यथा अनाचार होते हैं।
वतभंग के लिए सहायक परिणाम
अतिक्रम व्यतिक्रम * मन में व्रतभंग *व्रत का उल्लंघन का विचार उठना करना
अतिचार *विषयों में प्रवृत्ति
अनाचार * विषयों में अतिशय आसक्तिरूप
प्रवृत्ति
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