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सप्तम अध्याय उपभोग-परिभोग
उपभोग
परिभोग * जो वस्तु एक बार ही भोगने में * जो वस्तु अनेक बार भोगने में आती है
आती है जैसे- * भोजन, पानी, इत्र, पुष्प, * गृह, वाहन, वस्त्र, आभूषण आदि
माला आदि अतिथि संविभाग के योग्य सामग्री
भिक्षा उपकरण औषध प्रतिश्रय (रहने का स्थान) *निर्दोष शुद्ध * रत्नत्रय बढ़ाने * योग्य * ध्यान-अध्ययन आहार में सहायक शास्त्र आदि औषधि के लिए
मारणान्तिकीं सल्लेखनां जोषिता।।22।। सूत्रार्थ - तथा वह मारणान्तिक सल्लेखना का प्रीतिपूर्वक सेवन करने वाला
होता है।।22।। सल्लेखना (अच्छे प्रकार से कृश करना)
भेद काय
कषाय (बाहरी शरीर) (भीतरी परिणाम) कैसे अनशन, रस परित्यागादि शुभ ध्यान, स्वाध्यायादि पूर्वक
करें । के क्रम से निज परमात्म स्वरूप के सेवन से किस इतना ही कृश करें कि इस प्रकार कि मोह, राग, द्वेषादि से प्रकार परिणाम आकुलित होकर, अपना ज्ञान-दर्शन रूप परिणाम कृश करें | आराधना से चलायमान न हो मलिन न हो ___ व्रती मरण के अंत में इसे प्रीतिपूर्वक स्वीकार करता है।
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