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सप्तम अध्याय
146 . अतिचार
अनाचारमा व्रत का एकदेश भंग
*व्रत का पूर्ण भंग *अज्ञान, असावधानी, मोहवश होते हैं| *जान-बूझकर करना *संस्कारवश - क्षणिक *अभिप्राय पूर्वक *आत्मग्लानि सहित हो जाने वाला | *अच्छा समझकर किया जाने वाला * 'यह गलत किया' ऐसा भाव होता है | *'किया तो किया, क्या गलत है'.
ऐसा भाव होता है *पर्वत जितना होने पर भी हल्का | *तुच्छ होने पर भी बड़ा अपराध
व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम्।।24।। सूत्रार्थ - व्रतों और शीलों में पाँच-पाँच अतिचार हैं, जो क्रम से इस प्रकार
हैं।।24।।
वतों के पाँच-पाँच अतिचार
बन्धवधच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधाः।।25।। सूत्रार्थ - बन्ध, वध, छेद, अतिभार का आरोपण और अन्नपान का निरोध - ये अहिंसा अणुव्रत के पाँच अतिचार हैं।।25।।
अहिंसाणवत बन्ध वध छेद अतिभारारोपण अन्नपाननिरोध किसी को डंडा, चाबुक, कान, नाक, उचित भार से | भूख-प्यास अपने इष्ट
| आदि से आदिअवयवों अधिक भार | में बाधा कर स्थान में जाने से ।
प्राणियों को को भेदना का लादना | अन्न-पान का | रोकना मारना
| रोकना
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