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सप्तम अध्याय
निश्शल्यो व्रती॥18॥ सूत्रार्थ - जो शल्यरहित है, वह व्रती है।।18।।
वती की विशेषता शल्य (निरंतर पीड़ा देने वाली वस्तु,जैसे शरीर मे चुभा काँटा) से रहित होना
शल्य
मिथ्यात्व * अतत्त्वों का श्रद्धान करना
माया * ठगने की वृत्ति होना
निदान *भोगों की लालसा होना
अगार्यनगारश्च||19॥ सूत्रार्थ - उसके अगारी और अनागार - ये दो भेद हैं।।1।।
. अणुव्रतोऽगारी।।20।। सूत्रार्थ - अणुव्रतों का धारी अगारी है।।20।।
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वती
अगारी
अनगारी * भाव घर सहित-गृहस्थ व्रती * भाव घर रहित-गृह त्यागी साधु
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अणुव्रती
महाव्रती
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