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________________ 142 . सप्तम अध्याय गृहस्थ के वत 5 अणुव्रत 7 शील व्रत * मूल व्रत * उत्तर व्रत * अल्प व्रत (समस्त पाप क्रिया * मूल व्रतों की का पूर्ण अभाव न होने से) रक्षा के लिए हैं। सल्लेखना * जीवन के अंत में स्वीकृत व्रत अणुव्रत MOHARTERESISTAR NIRAHARA N PURI अहिंसाणुव्रत सत्याणुव्रत अचौर्या ब्रह्मचर्याणुव्रत परिग्रह परिअणुव्रत माणाणुव्रत संकल्पी त्रस स्नेह, बैर, बिना दिया स्वीकारी या | स्वेच्छा से दूसरे के द्रव्य | बिना स्वीकारी | परिग्रह का त्याग व के वश को ग्रहण परस्त्री के संग | परिमाण स्थावर हिंसा असत्य करने का का त्याग करना | करना को यथासंभव कहने का त्याग कम करना त्याग दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकप्रोषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणा तिथिसंविभागव्रतसंपन्नश्च।।21।। सूत्रार्थ - वह दिग्विरति, देशविरति, अनर्थदण्डविरति, सामायिकव्रत, प्रोषधोप वासव्रत, उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत और अतिथिसंविभागवत - इन व्रतों से भी सम्पन्न होता है।।21।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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