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सप्तम अध्याय
अन्य भी भावनाए
हिंसादिष्विहामुत्रापायावद्यदर्शनम् ||9||
सूत्रार्थ - हिंसादिक पाँच दोषों में ऐहिक और पारलौकिक अपाय और अवद्य
का दर्शन भावने योग्य है ।। 9 ॥
इह (इस लोक.)
दुःखमेव वा।।10।।
सूत्रार्थ - अथवा हिंसादिक दुःख ही हैं - ऐसी भावना करनी चाहिए ।।10।।
हिंसादि से विरक्त होने की भावना
हिंसादि पाँच पाप
अपाय (नाश) (स्वर्ग और मोक्ष का )
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अमुत्र ( पर लोक)
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अवद्य ( निन्दनीयपना)
देखा जाता है।
दुख रूप ही हैं
(आकुलता रूप होने से )
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