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सप्तम अध्याय
134 . स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टरसस्वशरीर
. संस्कारत्यागाः पञ्च।।7।। सूत्रार्थ - स्त्रियों में राग को पैदा करने वाली कथा के सुनने का त्याग, स्त्रियों के
मनोहर अंगों को देखने का त्याग, पूर्व भोगों के स्मरण का त्याग, गरिष्ठ
और इष्ट रस का त्याग तथा अपने शरीर के संस्कार का त्याग - ये ब्रह्मचर्य व्रत की पाँच भावनाएँ हैं।।7।।
| ब्रह्मचर्य व्रत की भावनाएँ।
त्यांग
स्त्री राग मनोहर अंग पूर्व भोगे हुए गरिष्ठ रसों शरीर का
कथा श्रवण निरीक्षण विषयोंका स्मरण का सेवन संस्कार सम्ब- (कर्ण (चक्षु (मन) (रसना (स्पर्शन और इन्द्रय इन्द्रिय) इन्द्रिय)
इन्द्रिय) , घ्राण इन्द्रिय)
न्धित
मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पञ्च।।।। सूत्रार्थ - मनोज्ञ और अमनोज्ञ इन्द्रियों के विषयों में क्रम से राग और द्वेष का
त्याग करना - ये अपरिग्रहव्रत की पाँच भावनाएँ हैं।।४।। परिग्रह त्याग वत की भावनाएँ
मनोज्ञ (जो मन को अच्छे लगें)
अमनोज्ञ (जो मन को अच्छे न लगें)
ऐसे
पञ्चेन्द्रिय विषय-भोगों में
राग-द्वेषा
राग-द्वेष का त्याग
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