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सप्तम अध्याय
क्रोधलो भभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचीभाषणं च पञ्च ||5|| सूत्रार्थ - क्रोधप्रत्याख्यान, लोभप्रत्याख्यान, भीरुत्व प्रत्याख्यान, हास्यप्रत्याख्यान और अनुवीचीभाषण - ये सत्य व्रत की पाँच भावनाएँ हैं || 5 || सत्य व्रत की भावनाएँ
त्याग (निषेध)
क्रोध लोभ भय हास्य
शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्षशुद्धिसधर्माविसंवादाः पञ्च ।।6।।
सूत्रार्थ - शून्यागारवास, विमोचितावास, परोपरोधाकरण, भैक्षशुद्धि और सधर्माविसंवाद - ये अचौर्य व्रत की पाँच भावनाएँ हैं । । 6 || अचौर्य व्रत की भावनाएँ
आवास संबंधित
शून्यागार विमोचिता- परोपरोधा
वास वास
(निर्जन ( दूसरों के
स्थान में
द्वारा त्यागे स्थान में
रहना)
निवास करना)
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करण
(दूसरे को अपने
विधि (प्रवृत्ति)
अनुवीची भाषण (शास्त्र के अनुसार
निर्दोष वचन बोलना)
ठहरे हुए स्थान पर
आने से नहीं रोकना)
भैक्ष सधर्म
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शुद्धि (भिक्षा की
शुद्धि
रखना)
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अविसंवाद
(साधर्मी के
साथ विसंवाद
नहीं करना)
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