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षष्ठ अध्याय . योगवक्रताविसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः।।22।। सूत्रार्थ - योगवक्रता और विसंवाद - ये अशुभ नाम कर्म के आस्रव हैं।।22।।
तविपरीतं शुभस्य।।23।। सूत्रार्थ - उससे विपरीत अर्थात् योग की सरलता और अविसंवाद - ये शुभ नामकर्म के आस्रव हैं।।23।।
नाम
अशुभ नाम
शुभ नाम
* योग कुटिलता (स्वयं के मोक्षमार्ग के * सरल मन, वचन, काय की चेष्टा
प्रतिकूल मन, वचन,
काय की चेष्टा) * विसंवादन (दूसरे को मोक्षमार्ग के * अन्य को अन्यथा प्रवर्तन नहीं
प्रतिकूल प्रवर्तन कराना) . कराना
योग वक्रता एवं विसंवादन में अन्तर योग वक्रता
विसंवादन - * स्व अपेक्षा
* पर की अपेक्षा * मन, वचन, काय की कुटिलता * कुटिल योग सहित दूसरों को
मिथ्यामार्ग के लिए प्रेरित करना
*कारण
* कार्य
दर्शनविशुद्धिर्विनयसम्पन्नता शीलव्रतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी साधुसमाधिर्वैयावृत्त्यकरणमहदाचार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्तिरावश्यकापरिहाणिर्मार्गप्रभावना
प्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थकरत्वस्य।।24।।
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