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________________ 126 षष्ठ अध्याय . योगवक्रताविसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः।।22।। सूत्रार्थ - योगवक्रता और विसंवाद - ये अशुभ नाम कर्म के आस्रव हैं।।22।। तविपरीतं शुभस्य।।23।। सूत्रार्थ - उससे विपरीत अर्थात् योग की सरलता और अविसंवाद - ये शुभ नामकर्म के आस्रव हैं।।23।। नाम अशुभ नाम शुभ नाम * योग कुटिलता (स्वयं के मोक्षमार्ग के * सरल मन, वचन, काय की चेष्टा प्रतिकूल मन, वचन, काय की चेष्टा) * विसंवादन (दूसरे को मोक्षमार्ग के * अन्य को अन्यथा प्रवर्तन नहीं प्रतिकूल प्रवर्तन कराना) . कराना योग वक्रता एवं विसंवादन में अन्तर योग वक्रता विसंवादन - * स्व अपेक्षा * पर की अपेक्षा * मन, वचन, काय की कुटिलता * कुटिल योग सहित दूसरों को मिथ्यामार्ग के लिए प्रेरित करना *कारण * कार्य दर्शनविशुद्धिर्विनयसम्पन्नता शीलव्रतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी साधुसमाधिर्वैयावृत्त्यकरणमहदाचार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्तिरावश्यकापरिहाणिर्मार्गप्रभावना प्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थकरत्वस्य।।24।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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