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षष्ठ अध्याय
बहारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः।।15।। सूत्रार्थ - बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रहपने का भाव नरकायु का आस्रव है।।15।।.
मायातैर्यग्योनस्य।।16।। सूत्रार्थ - माया तिर्यंचायु का आस्रव है।।16।।
अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य।।17।। सूत्रार्थ - अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रहपने का भाव मनुष्यायु का आस्रव
है।।17।
स्वभावमार्दवं च।।18।। सूत्रार्थ - स्वभाव की मृदुता भी मनुष्यायु का आस्रव है।।18।।
निःशीलव्रतत्वं च सर्वेषाम्।।1।। सूत्रार्थ - शीलरहित और व्रतरहित होना सब आयुओं का आस्रव है।।19।।
सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि दैवस्य।।20।। सूत्रार्थ - सरागसंयम, संयमासंयम, अकामनिर्जरा और बालतप - ये देवायु
के आस्रव हैं।।20।।
सम्यक्त्वं च||21|| सूत्रार्थ - सम्यक्त्व भी देवायु का आस्रव है।।21।।
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