SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ अध्याय __123 केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य।।13।। सूत्रार्थ - केवली, श्रुत, संघ, धर्म और देव - इनका अवर्णवाद दर्शनमोहनीय कर्म का आस्रव है।।13।। कषायोदयात्तीव्रपरिणामश्चारित्रमोहस्य।।14।। सूत्रार्थ - कषाय के उदय से होने वाला तीव्र आत्मपरिणाम चारित्र मोहनीय का आस्रव है।।14।। मोहनीय दर्शन मोहनीय चारित्र मोहनीय इनका अवर्णवाद करना (निर्दोष में दोष लगाना) . कषाय के उदय से तीव्र . कलुष परिणाम जैसे केवली श्रुत संघ धर्म देव (अरिहंत (केवली (निर्ग्रन्थ (जो उत्तम (देवगति - स्वयं कषाय करना सर्वज्ञ) का कहा वीतरागी स्थान में के देव) - दूसरों में कषाय हुआ और मुनियों का रखे) उत्पन्न कराना गणधर समूह) - तपस्वी जनों के चारित्र द्वारा रचा में दूषण लगाना - संक्लेश पैदा करने वाले वेष और व्रत धारण करना हुआ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy