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षष्ठ अध्याय निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः परम्।।७।। सूत्रार्थ - पर अर्थात् अजीवाधिकरण क्रम से दो, चार, दो और तीन भेद वाले .
निर्वर्तना, निक्षेप, संयोग और निसर्ग रूप है।।9।।।
अजीव अधिकरण
निर्वर्तना निक्षेप (रचना करना) (रखना)
2 . 4
संयोग (मिलाना) .
निसर्ग (प्रवर्तना)
मूल उत्तर अप्रत्यवेक्षित भक्तपान काय : गुण गुण (बिना देखे) | (विरुद्ध अन्न, (शरीर से (अंतरंग (बहिरंग दुःप्रमृष्ट जल आदि) | कुचेष्टा आदि) साधन) साधन) | (बिना प्रमार्जित) उपकरण वचन
शरीर काष्ठ कर्म सहसा (शीत का उष्ण, (दुष्ट शब्दों -वचन -चित्रकर्म । (भय, शीघ्रता शुद्ध का अंशुद्ध | काउच्चारण) -मन पुस्तक कर्म के कारण) से स्पर्श करना) मन प्राण आदि अनाभोग
(मन में दुष्ट (उपयोग रहित
विचार आदि) कहीं भी)
अपान
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