________________
95
पञ्चम अध्याय · सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च।।20।। सूत्रार्थ - सुख, दुःख, जीवित और मरण - ये भी पुद्गलों के उपकार हैं।।20।।
पुद्गल का उपकार
सुख दुःख जीवन मरण साता वेदनीय असाता वेदनीय आयु कर्म आयु कर्म का का उदय होने का उदय होने का बने रहना उच्छेदपर जीव को पर जीव को
समाप्त होना प्रसन्नता अप्रसन्नता उपर्युक्त सभी पुद्गल और अन्य जीव का जीव पर निमित्तरूप
उपकार है।
परस्परोपग्रहो जीवानाम्।।21।। सूत्रार्थ - परस्पर निमित्त होना - यह जीवों का उपकार है।।21।।
जीव का उपकार
उपकार
योग्यता
कर्ता
(निमित्त)
जीव जीव को
जीव की स्वयं की
एक जीव दूसरे जीव का कर्ता नहीं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org