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चतुर्थ अध्याय भवनत्रिक-आयु आदि | उनासारीर की अविध ज्ञान क्षेत्र) वा अवधि बान काल
जघन्य । उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट भवनवासी असुरकुमार 1पक्ष बाद 25 धनुष असंख्यात असंख्यात
(37.5 मीटर) कोटी योजन नागकुमार | 12'/, सुपर्णकुमार | मुहूत
असंख्यात
असुरद्वीपकुमार|| बाद | 10 धनुष || 25 ||हजार
प्रथम 3 ||(15 मी.) || योजन | योजन | 1 दिन
संख्या| 12 मुहूर्त,
तवाँ शेष 3 प्रकार 7 मुहूर्त ।
वर्ष
हजार
। कुछ कम
का
शेष 6 प्रकार प्रकार
भाग
व्यंतर
कुछ
धिक5
ज्योतिषी
7 धनुष | व्यंतर | ॥ (लगभग से 10 मीटर) |संख्यात
व्यंतर से बहुत अधिक
गुणा
जिन व्यंतर देवों की आयु मात्र 10 हजार वर्ष है, उनका आहार दो दिन बाद और श्वासोच्छवास सात प्राणापान बाद होता है। नारकियों की आयु का वर्णन तीसरे अध्याय से देखें।
नारकाणां च द्वितीयादिषु।।35।। सूत्रार्थ - दूसरी आदि भूमियों में नारकों की पूर्व-पूर्व की उत्कृष्ट स्थिति ही
अनन्तर-अनन्तर की जघन्य स्थिति है।।35।।
दशवर्षसहस्राणि प्रथमायाम्।।36।। सूत्रार्थ - प्रथम भूमि में दस हजार वर्ष जघन्य स्थिति है।।36।।
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