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________________ . 86 चतुर्थ अध्याय ज्योतिष्काणां च।।40॥ सूत्रार्थ - ज्योतिषियों की उत्कृष्ट स्थिति साधिक एक पल्योपम है।।40।। तदष्टभागोऽपरा।।41॥ सूत्रार्थ - ज्योतिषियों की जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति का आठवाँ भाग है।।41।। भवनत्रिक-आयु आदि | देवों के नाम | आयु देवांगना आहारेच्छा जघन्य उत्कृष्ट - आय । अतराल भवनवासी | असुरकुमार 10 हजार वर्ष 1 सागर | 3 पल्य 1000 वर्ष नागकुमार 10 हजार वर्ष 3 पल्यपल्य/8 121/2 दिन सुपर्णकुमार 10 हजार वर्ष 21/2 पल्य 3 पूर्व कोटी 121/2 दिन द्वीपकुमार | 10 हजार वर्ष 2 पल्य 3 करोड़ वर्ष 121/2 दिन शेष 6 प्रकार 10 हजार वर्ष 11/2 पल्या3 करोड़ वर्ष । | प्रथम 3 प्रकार 12 दिन, शेष 3 प्रकार 7',दिन व्यंतर 10 हजार वर्ष 1 पल्य | पल्य/2 कुछ अधिक 5 दिन ज्योतिषी | पल्य /8 1 पल्य सभी ज्योतिषी देवांगनाओं की अपने देवों की आयु के आधे प्रमाण |पल्य+1 चन्द्र वर्ष पल्य/4 | पल्य+ 1000 वर्ष ग्रह पल्य+, नक्षत्र पल्य/8 100 वर्ष |पल्य/2 पल्य/4 तारे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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