________________
चतुर्थ अध्याय कौन देव मरकर कहाँ उत्पन्न होते हैं।
सभी देव मरकर देवों में, नरकों में, भोगभूमिया में, विकलत्रय, असैनी पंचेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, बादर अग्नि व वायु,
सभी अपर्याप्तकों में उत्पन्न नहीं होते हैं। 1) भवनवासी से ऐशान (2) तक | -बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय,
-पंचेन्द्रिय सैनी तिर्यंच व मनुष्य 2) सानत्कुमार से सहस्रार (3-12)| पंचेन्द्रिय सैनी तिर्यंच व मनुष्य तक
(एकेन्द्रिय नहीं होते) 3) आनत (13) स्वर्ग से ऊपर के | मनुष्य ही होते हैं (तिर्यंच नहीं होते) 63 शलाका पुरुषों सम्बन्धी विशेषता -भवनत्रिक के देव . 63 शलाका पुरुष नहीं होते हैं -सौधर्म से ग्रैवेयक तक के देव 63 शलाका पुरुषों में उत्पन्न हो सकते हैं -अनुदिश व अनुत्तर के देव तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र तो हो
सकते हैं । नारायण, प्रतिनारायण
नहीं हो सकते हैं। स्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमार्द्ध
हीनमिताः।।28।। सूत्रार्थ - असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार और शेष भवनवासियों
की उत्कृष्ट स्थितिक्रम से एक सागरोपम, तीन पल्योपम, ढाईपल्योपम, दो पल्योपम और डेढ़ पल्योपम होती है।।28।। सूत्र क्रमांक 35 और 36 के लिए आगे देखें!
भवनेषु च।।37॥ सूत्रार्थ - भवनवासियों में भी दस हजार वर्ष जघन्य स्थिति है।।37।।
व्यन्तराणाम् च।।38॥ सूत्रार्थ - व्यन्तरों की दस हजार वर्ष जघन्य स्थिति है।।38।।
_ परा पल्योपममधिकम्।।39।। सूत्रार्थ - और उत्कृष्ट स्थिति साधिक एक पल्योपम है।।39।।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org